उत्तर और दक्षिण में कोई विभेद नहीं है; गंगा और कावेरी का जल एक ही है, प्रो. सुब्बैया एस.
भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय द्वारा समर्थित काशी-तमिल समागम के तीसरे वर्ष आयोजित हो रहे विविध अकाद्मिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों की श्रृंखला में दक्षिण बिहार केन्द्रीय विश्वविद्यालय, गया के स्वामी विवेकानंद सभागार में ऐतिहासिक अध्ययन एवं पुरातत्त्व विभाग तथा फार्मेसी विभाग के संयुक्त तत्त्वावधान में “अगस्त ऋषि, सिद्ध चिकित्सीय परम्परा तथा इसका सम्पूर्ण भारत में विकास” विषय पर दिनांक 18 फ़रवरी 2025 को एक दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया गया जिसमें लगभग दो सौ से अधिक विद्वानों एवं छात्र-छात्राओं ने प्रतिभाग किया| इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि किल्पॉक मेडिकल कॉलेज, चेन्नई के सर्जिकल ऑन्कोलॉजी के विभागाध्यक्ष प्रो. सुब्बैया शनमुगम विद्यमान रहे| उन्होंने उत्तर-दक्षिण विभेद को सिरे से नकारते हुए विचार और मानस रूप में भारत की मूलभूत एकता पर जोर दिया| उन्होंने राष्ट्र के उन्नयन हेतु शिक्षा, समृद्धि के साथ-साथ स्वास्थ्य को भी एक आवश्यक पैमाना बताया| इस सन्दर्भ में उन्होंने महर्षि अगस्त द्वारा विकसित किये गए सिद्ध परम्परा का उदाहरण दिया जो ने केवल रोगों के उपचार एवं व्यक्ति को नीरोगी रहने हेतु कारगर है बल्कि यह मोक्ष का मार्ग भी प्रशस्त करता है| उन्होंने मानव शरीर को पवित्रता का मंदिर बताया जिसमें ईश्वर का निवास होता है| सिद्ध तकनीक केवल उपचार पद्धति नहीं जीवन जीने का तरीका है जिसके द्वारा शरीररूपी मंदिर को स्वच्छ रखकर मुक्ति के मार्ग पर आगे बढ़ा जा सकता है|
कार्यक्रम की शुरुआत में मुख्य अतिथि प्रो. सुब्बैया एस., सिद्ध क्लीनिकल रिसर्च यूनिट , सफदरजंग हॉस्पिटल नई दिल्ली की शोध अधिकारी डॉ. आर. सुशीला , सिद्ध सेंट्रल रिसर्च इंस्टिट्यूट की डॉ. रथीनामाला, दक्षिण बिहार केन्द्रीय विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति प्रो. कामेश्वर नाथ सिंह तथा अन्य गणमान्य अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलन एवं विश्वविद्यालय के कुलगीत से हुआ | कार्यशाला के समन्वयक तथा इतिहास विभाग के अध्यक्ष प्रो आनन्द सिंह ने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए सिद्ध परम्परा का इतिहास प्रस्तुत किया तथा इसके सन्दर्भों को हड्ड्प्पा एवं वैदिक परम्पराओं से जोड़ कर देखते हुए भारत के उन्नत एवं समृद्धशाली चिकित्सीय परम्परा की तरफ ध्यान आकृष्ट कराया|
उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता कर रहे दक्षिण बिहार केन्द्रीय विश्विद्यालय के कुलपति प्रो कामेश्वर नाथ सिंह जी ने राष्ट्र के एकात्म स्वरुप विवरण देते हुए यह कहा कि पूरे देश के प्रकृति और संस्कृति एक ही है | हम सभी को भारत के नागरिक होने के नाते परिपूरकता के भाव से पूरे राष्ट्र की समृद्धि पर जोर देना चाहिए| उन्होंने कार्यक्रम के सफल समन्वयन के लिए आयोजनकर्ताओं को बधाई भी दी|
इस कार्यशाला के तकनीकी सत्र में सिद्ध क्लीनिकल रिसर्च यूनिट , सफदरजंग हॉस्पिटल नई दिल्ली की शोध अधिकारी डॉ. आर. सुशीला , सिद्ध सेंट्रल रिसर्च इंस्टिट्यूट की डॉ. रथीनामाला, सुथान सिद्ध वर्मा क्लिनिक, तमिलनाडु के डॉ. सेल्वामणि का व्याख्यान हुआ | इन विद्वानों ने सिद्ध परम्परा , इसके ऐतिहासिक विकास, सामाजिक रूप से इसकी प्रासंगिकता पर जोर दिया, साथ-ही-साथ इस विषय पर शोध कार्य को बढाये जाने की आवश्यकता जताई| समापन सत्र की अध्यक्षता करते हुए इतिहास विभाग के डॉ सुधांशु कुमार झा ने आयुर्वेद एवं सिद्ध प्रणाली को भारतीय ज्ञान परम्परा से जोड़ कर प्रस्तुत किया | उद्घाटन सत्र में फार्मेसी के डॉ विभास कुमार म्हणता तथा समापन सत्र में इतिहास विभाग की डॉ .प्रीति अनिल खांडदरे ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया | इस राष्ट्रीय कार्यशाला के समन्वयक द्वय इतिहास विभाग के अध्यक्ष प्रो आनंद सिंह तथा स्वास्थ्य संकाय के डीन प्रो सुब्रत भट्टमिस्र थे| इतिहास विभाग के डॉ. प्रीति अनिल खांडदरे, डॉ. रोहित कुमार, डॉ नीरज सिंह एवं डॉ अनिल कुमार कार्यक्रम के आयोजन सचिव थे | कार्यक्रम का संचालन में इतिहास विभाग के शोधार्थी सुमन, हिमाद्री, दिव्या, अर्चना , अनु , प्रत्युष, शुभेंदु , नितेश , अमृत , क्षितिज, संदीप , सुमित, विश्वरंजन , शिवम् , अरुण , मानप्रकाश समेत स्नातक एवं परस्नातक इतिहास के विद्यार्थियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई|